With great excitement, on behalf of the entire team, I present to you our latest song. This has been a superb team effort.
For me, the song always starts with the words, and this is a great poem by a very prominent Marathi poet, Indira Sant. In my interpretation, it describes the restlessness one might feel in the evening stages of life. It’s not sad, but solemn.
That’s the mood we have tried to convey. Most of the team is repeat names. The fantastic music arrangement is thanks to Aniket Damale. For the melody, it fits perfectly like a glove. Rhythm is arranged by Amey Thakurdesai and Hanumant Rawade. Flute accompaniment is by Pranav Haridas.
To top it all, the singing by Neha Kale is just perfectly on the mark. Her voice and emotive singing has taken this song to an even higher level.
The stunning sketches for the video have been provided by my multi-talented friend, Anita Limaye.
Considering the words, I thought Pooriya Dhanashree would be the perfect raag to carry the emotions and hence I have used it for the melody.
I hope you enjoy the song as much as we all enjoyed making it. Please listen and share!
हाकेवरी आहे गाव, ह्याच आशेने चालले
गेले दिवस महिने, वाटे युगचि संपले
दूर दूर तेवणारा दिवा कसा तो दिसेना
डोंगराच्या पायथ्याशी रेघ धुराची वोळेना
ऐकू येईना पावरी आणि घुंगुरांचा नाद
राउळींच्या घंटेचाहि उमटेना पडसाद
कुठे असेल ते गाव, जिथे आहे पोचायाचे
कुठे असेल ते घर, जिथे आहे थांबायाचे
कुठे असेल तो स्वामी त्याही वास्तूचा महान
ज्याच्या पायापाशी आहे टाकायाचे तनमन
इस उम्मीद में चलती जाऊँ बस अब दूर नहीं वो गाँव
कितने सालों, नहीं युगों से, मेरे थमे नहीं हैं पाँव
दूर तलक रौशनी का कोई ज़र्रा भी क्यूँ अयाँ नहीं
क्यूँ दूर वादियों से उठता घुंधला सा भी धुआँ नहीं
घुंघरुओं की आवाज़ कहाँ है, बोल कहाँ हैं बंसियों के
साफ़ सुनाई दें न कहीं भी शब्द मठों की घंटियों के
है किस सिम्त वो गाँव जहाँ जा अपना धर्म निभाना है
कौन सा है वो घर जो मेरा अंतिम एक ठिकाना है
कौन महात्मा मालिक घर का किस का ताना बाना है
तन मन कर के अर्पण जिस के दर पर सीस नवाना है
कितने सालों, नहीं युगों से, मेरे थमे नहीं हैं पाँव
दूर तलक रौशनी का कोई ज़र्रा भी क्यूँ अयाँ नहीं
क्यूँ दूर वादियों से उठता घुंधला सा भी धुआँ नहीं
घुंघरुओं की आवाज़ कहाँ है, बोल कहाँ हैं बंसियों के
साफ़ सुनाई दें न कहीं भी शब्द मठों की घंटियों के
है किस सिम्त वो गाँव जहाँ जा अपना धर्म निभाना है
कौन सा है वो घर जो मेरा अंतिम एक ठिकाना है
कौन महात्मा मालिक घर का किस का ताना बाना है
तन मन कर के अर्पण जिस के दर पर सीस नवाना है
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